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हुआ शंखनाद (कविता)

देश पर आई विपदा गहरी,
हुआ शंखनाद जागो प्रहरी।

शत्रु बैठे निगाहें टिकाए,
नित नए आतंक फैलाए,
चुनौतियाँ बढ़ती ही जाए,

दुश्मनी सदा रही है बहरी,
देश पर आई विपदा गहरी,
हुआ शंखनाद जागो प्रहरी।

जनता की आँखों में पानी,
राजा ने लड़ने की ठानी,
लोग बनाते सिर्फ़ कहानी,

मुश्किल कहाँ रहती ठहरी,
देश पर आई विपदा गहरी,
हुआ शंखनाद जागो प्रहरी।

कहाँ जा रहे यह मतवाले,
फूट गये पाँवों के छाले,
राह तकें अपलक घरवाले,

वापस घर लौट रहे हैं शहरी,
देश पर आई विपदा गहरी,
हुआ शंखनाद जागो प्रहरी।

कितनी भी की थी तैयारी,
पड़ी कैसी आपदा भारी,
सबको ताक रही बीमारी,

लाँघना नहीं घर की देहरी,
देश पर आई विपदा गहरी,
हुआ शंखनाद जागो प्रहरी।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 13 अगस्त, 2021
            

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