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इक तरफ़ है भूक बैरन इक तरफ़ पकवान हैं (ग़ज़ल)

इक तरफ़ है भूक बैरन इक तरफ़ पकवान हैं,
फ़ासले ना मिट सकेंगे दरमियाँ भगवान हैं।

आज के रघुवंश की तकलीफ़ यारो है जुदा,
साथ में रैदास के क्यों आ खड़े रसखान हैं।

हर इमारत है खड़ी तक़सीम की बुनियाद पे,
एक हिन्दुस्तान में अब लाख हिन्दुस्तान हैं।

धर्म संसद के नज़ारे देखकर कुछ तो कहो,
बोलते हैं आदमी या चीख़ते शैतान हैं।

इस तरक़्क़ी के सफ़र की है अजब ये दास्ताँ,
भीड़ तो बढ़ती गई पर खो गए इन्सान हैं।

इसलिए नाराज़ हमसे हैं कवि दरबार के,
बेज़बानों की ज़बाँ में फूँकते हम जान हैं।


रचनाकार : मनजीत भोला
लेखन तिथि : 6 दिसम्बर, 2021
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122 2122 2122 212
            

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