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इतिहास बदलना होगा (कविता)

कर्म रथ पर आरूढ़ हो, फिर नया सवेरा आएगा,
जाग उठेगी क़िस्मत तेरी, सूर्य उदित हो जाएगा।
दर्द सहे है तुमने कितने, कितनी रातें जागे हो,
सपने देखे है तुमने, उन सपनों का क्या होगा।
बीच राह में जो बैठ गया, बैठा ही रह जाएगा,
तेरा हर सुन्दर सपना, सपना ही बन रह जाएगा।
लाख ताने सुने तुमने, अपमानों को भी पीया है,
कब तक यूँ ही पड़े रहोगे, अब तक यूँ ही जीया है।
उठ जाग उठो अब कमर कसो, दिन ये फिर ना आएगा,
अब भी तुम ना उठ पाए, इतिहास निगल ही जाएगा।
गुम न कही अब तुम हो जाओ अन्धेरे गलियारों में,
लाखों आए और चले गए, इतिहासों के पन्नों में।
लक्ष्य बनाओं अर्जुन जैसा, तीर वही भेदन होगा,
चाहे आए बाधाए भी, समूल नष्ट करना होगा।
त्याग, संकल्प समर्पण से, सभी संभव हो जाएगा,
सागर पृथ्वी पर्वत तो क्या, अम्बर भी झुक जाएगा।
तु चाहे बने हाड मांस ही, वज्र दधीचि का होगा,
मिसाले जब भी दी जाएगी यशोगान तब तब होगा।
उठा जगा पुरुषार्थ को अब तुझकों ही चलना होगा,
इतिहासों के पन्नों में नाम तुझे ही लिखना होगा।


लेखन तिथि : 31 दिसम्बर, 2021
            

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