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झूठे हैं सब लोग यहाँ (नवगीत)

झूठे हैं सब लोग यहाँ
दुनिया भी ये झूठी है।

मछली सागर की अभी
गहराई नाप रही।
हाईवे को देखकर
पगडंडी काँप रही।।

पहनी साज़िश ने बलवा से
प्यार की अँगूठी है।

दो घरों के बीच में
मानो रार ठन जाती।
लहरें भी हैं कभी-कभी
सुनामी बन जातीं।।

मुस्कान तबाही की देखो तो
बहुत अनूठी है।

अंबर में क़ब्ज़ा करती
मँडराती है चील।
सूरज लगता है मानो
जली हुई कंदील।।

लग रहे सितारे गर्दिश में हैं
क़िस्मत रूठी है।


लेखन तिथि : 13 मार्च, 2022
            

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