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कामयाबी का परिणाम (लघुकथा)

एक छोटे से गाँव की बात है जहाँ चरनदास का परिवार रहता था जिसके दो बेटे राम और श्याम थे। राम और श्याम की माता कमला देवी उन्हें बचपन में ही छोड़कर चल बसी थी चरनदास मज़दूरी करके अपनें परिवार का पालन-पोशन करता था और अपनें बेटों को पढ़ा लिखाकर कामयाब बनानें के लिए चरनदास दिन-रात मेहनत करता, वह अपनें बच्चों को पढ़ा लिखाकर कामयाब बनाना चाहता था। चरनदास नहीं चाहता था कि उसकी भाँति उसके बेटे भी ऐसे ही हालातों में अपनी ज़िन्दगी बसर करें, चरनदास भूखा रहकर भी अपनें बेटों को स्कूल भेजता था।

राम अपने पिता की बेबसी और लाचारी को देखकर बहुत दुखी होता, वह पढ़ लिखकर कामयाब बनकर अपनें पिता को सुख चैन भरी ज़िन्दगी देना चाहता था वहीं दूसरी और श्याम मन-मौजी रहता और पढ़ने लिखनें में बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था।

जैसे-जैसे बेटे बड़े हुए चरनदास ने दोनों की शादी कर दी, श्याम मज़दूरी करनें लगा और कुछ समय पश्चात राम की शहर में नौकरी लग गई। जैसे-जैसे दिन गुज़रते गए चरनदास का परिवार परेशानियों से उबरनें लगा चरनदास बहुत ख़ुश था कि उसका बेटा राम कामयाब हो गया वहीं दूसरी और यह सोचकर दुखी भी होता था कि श्याम मज़दूरी करता है। लेकिन राम अपनें छोटे भाई श्याम के लिए हर सम्भव प्रयास करता और श्याम के लिए कई व्यवसाय करवाए मगर किसी भी व्यवसाय को ठीक से नहीं कर पाने के कारण वह मज़दूरी ही करने लगा। राम अपने भाई को देखकर बहुत दुखी होता और हर वक़्त मदद के लिए तैयार खड़ा रहता है, वहीं श्याम अपनी पत्नि रतना के कहनें में आकर घर के बटवारें की बात करने लगा था। चरनदास दोनों बेटों का बँटवारा करने लगता है तो श्याम अपनी मज़दूरी ग़रीबी का हवाला देते हुए बँटवारे में बेईमानी से ज़्यादा हिस्सा हड़प लेता है मगर राम ख़ुशी ख़ुशी मान जाता है।

कुछ समय पश्चात चरनदास की मृत्यु हो जाती है अब राम और श्याम दोनों अलग अलग रहनें लगे, लेकिन राम को हर वक़्त श्याम की चिंता रहती उसके बच्चों की चिंता रहती मगर श्याम की पत्नि रतना को राम की कामयाबी फूटी आँख नहीं सुहाती थी आहिस्ता आहिस्ता समय गुज़रता गया और बच्चे बड़े होने लगते है राम व राम की पत्नि शकुन्तला अपनें बच्चों (मोहन व सोहन) के साथ साथ श्याम के बच्चों (रोहन व सुनीता) का ख़्याल भी रखती थी राम अपनें व श्याम के बच्चों को पढनें के लिए बहुत उत्साहित करता था जिससे वह कामयाब इन्सान बन सके। कुछ समय बाद राम के बेटे मोहन की नौकरी लग जाती है तो श्याम की पत्नि रतना के अन्दर राम व राम के बच्चों की कामयाबी देखकर ईर्ष्या और बढनें लगती है। श्याम की पत्नि अब राम को ताने मारने लगती है और कहती है कि अपनें बच्चों की नौकरी लगा ली मगर हमारे बच्चों की नौकरी नहीं लगाई, रतना राम व राम के बच्चों के ख़िलाफ़ अपनें बच्चों के मन में भी ज़हर घोलनें लगती है जिससे राम और श्याम के बच्चों में भेद-भाव की भावना जगने लगी। और कुछ समय पश्चात श्याम की बिमारी के चलते मृत्यु हो जाती है अब श्याम के बेटे रोहन के ऊपर घर की ज़िम्मेदारी आ गई, राम हर सम्भव मदद करनें की कोशिश करता है लेकिन रोहन अपनी माँ रतना के कहनें में आकर राम व राम के बेटों के प्रति मन में द्वेष रखनें लगा था और अपनी पढाई छोड़कर ज़िम्मेदारी के चलते मज़दूरी करनें लगा, यह देखकर राम को बहुत दुख होता मगर कुछ कर नहीं पाता क्योंकि रोहन की माँ अपनें बच्चों के मन में हद से ज़्यादा ज़हर घोल चुकी थी।

अब राम की उम्र हो चली है, राम श्याम के बेटे को मज़दूरी करते देख बहुत दुखी होता है। अब राम व श्याम की तरह उनकें बेटों के बीच भी बहुत दूरियाँ हो चली है। कौन सही है कौन ग़लत मैं नहीं जनता मगर कामयाबी का परिणाम अपनें खोकर भगत रहा हूँ। राम मन ही मन बस यही सोचता कि "नाकामयाब थे तो पराए भी अपनें थे, कामयाबी आई तो अपनें भी पराए हो चले"।


लेखन तिथि : 1 जुलाई, 2021
            

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