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कहीं फ़र्श तो कहीं रंगे मन (कविता)

होली की वो मधुमय बेला,
बीत गई कुछ छोड़ निशानी।
गली मोहल्ले रँग-रँग है,
रंग हुआ नाली का पानी।
दीवारों पर रँग जमा है,
चेहरों पर भी रँग रवानी।
कहीं फ़र्श तो कहीं रंगे मन,
अलग-अलग कर रहे बयानी।
होली तो हे मीत यही बस,
याद दिलाने आती है।
नफ़रत तोड़ो प्यार निभाओ,
दुनिया किसकी थाती है।
होली का मङ्गलमय उत्सव,
मीत तभी साकार बनेगा।
नफ़रत के दुर्भाव त्याग जब,
प्रेमरङ्ग संसार दिखेगा।
वैसे तो होली के रँग में,
सभी लोग रँग जाते हैं।
पर होली का अर्थ यही है,
चलो सभी अपनाते हैं।
प्रेमरङ्ग में रंगे कृष्ण थे,
राधा रानी के जैसे।
सच्चे रँग न धूमिल पड़ते,
इंद्रधनुष के रँग जैसे।
होली के गर सही अर्थ को,
लोग सभी अपना लेंगे।
कुत्सित मन की दुर्बलता को,
पल में दूर भगा देंगे।
होली की वो मधुमय बेला,
बीत गई कुछ छोड़ निशानी।
गली मोहल्ले रँग-रँग है,
रँगा हुआ नाली का पानी।


लेखन तिथि : 23 मार्च, 2021
            

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