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कान्हा (आलेख)

कान्हा कोई नाम नहीं, कोई व्यक्ति नहीं, कान्हा तो साक्षात परबृह्म हैं अजन्मा हैं अमर हैं अजर हैं।
परन्तु वह जसुदा मइया के नन्हे कान्हा, बलदाऊ के कान्हा, वह राधा के कान्हा वह सुदामा के कान्हा भी तो हैं वह तो सभी के हैं, सर्वत्र हैं।
क्रूर कंस सहित अनेक आतताइयों को मृत्युदंड देने वाले कान्हा गोवर्धन पर्वत को एक उंगली पर उठा लेने वाले कान्हा तो दीन जनो के रक्षाकवच हैं। कान्हा ही तो प्राण हैं आत्मा हैं।

श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से जो उपदेश दिया आज भी प्रासंगिक है।
उनके उपदेश के अनुसार, बिना सोचे विचारे अपनी राय कहीं भी प्रकट नहीं करनी चाहिए। संभव है कि मित्र के भेष में कोई शत्रु ही हो।
यदि आपके बोलने व कार्य करने से समाज का भला हो रहा है तो वह कार्य करने से कदापि न हिचकें।
अन्याय का प्रतिरोध तो अवश्य करें।
यह सत्य है कि सभी लोग सभी तरह की परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाते।
यदि आप अच्छे उद्देश्य से कोई कार्य करना चाहते तो सहयोग में कई सारे क़दम अवश्य उठेंगे।
यदि साहस और समूह का साथ मिले तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
पानी की हज़ारों धारा जब एक साथ गिरती है तो उस पर सामूहिक शक्ति के बल पर ही नदिया और तालाब भरते हैं।
श्री कृष्ण ने फल की चिंता किए बिना कर्म करने की शिक्षा दी।
तत्काल सफलता न मिले तो भी सच्चे मन से किया गया कार्य निष्फल नहीं होता, समय आने पर किसी न किसी रूप में अच्छा परिणाम सामने अवश्य आता है।
श्री कृष्ण का अनुसरण किया जाए तो कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक व सफल बना सकता है।
समाज में जब जब प्रेम, त्याग और परोपकार जैसे मानवीय गुणों का ह्रास होता है, अन्याय, अत्याचार, अधर्म जैसे अवगुणों की वृद्धि होने लगती है तो इससे संपूर्ण मानवता प्रभावित होती है। लेकिन बुराइयाँ अधिक समय तक नहीं टिकती यह अच्छाई से एक दिन अवश्य हार जाती हैं।
यह जीत सर्वश्रेष्ठ मानव सुनिश्चित करते हैं जो ईश्वर के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
इन्हीं को अवतार कहा जाता है, इन्ही को भगवान माना जाता है।

जब धरती पर कंस, जरासंध, दुर्योधन जैसे दुष्ट राजाओं के अत्याचार बढ़े, लोलुपताज़ दुष्टता बढ़ी तो समाज को ऐसा महापुरुष को ज़रूरत हुई जो धरती पर जन्म लेकर अधर्मियों से धरा को मुक्त कर सके।
मगध नरेश जरासंध छोटे छोटे राजा को क़ैद कर उनके राज्य हड़प लेता था।
मथुरा के दुष्ट राजकुमार कंस ने बूढ़े पिता महाराज उग्रसेन को बंदी बना लिया था व स्वार्थपरता की हद तक जाने वाले दुर्योधन की घोर उद्दंडता चरम सीमा पर थी। समाज में बुराइयाँ इतनी बढ़ गई थी उन दिनों सज्जन लोग भी ख़ुद को सुरक्षित करने के लिए अत्याचारियों से संधि करने लगे थे। लोगों की रुचि ग़लत कार्यों में होने लगी थी। अधर्म का नाश होने लगा था। द्रोणाचार्य जैसे विद्वान और ज्ञानी भी अधर्मी कौरवों के पक्ष में हो गए थे। ऐसे घोर संकट की स्थिति में संपूर्ण समाज एक ऐसे महापुरुष की राह देख रहा था जो अधर्म का नाश कर पुनः धर्म की स्थापना करें।तभी लोगों की अभिलाषा भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण के जन्म के साथ पूरी हुई।
भगवान श्री कृष्ण ने सुन्दर समाज की स्थापना की।
गीता के माध्यम से उपदेश देकर विश्व में नव चेतना का नव प्राण का संचार किया जो आज भी प्रासंगिक है।


लेखन तिथि : 5 अगस्त, 2020
            

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