देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

कर भला तो हो भला (कहानी)

"क्या हुआ मोहन, इतने उदास क्यों हो? तुम तो इंटरव्यू के लिए गए थे, क्या हुआ तुम्हारी नौकरी का?" -जाड़े के दिनों में मोहन के माथे से निकलते हुए पसीने को देखकर सोहन ने पूछा। पहले तो मोहन ने सोहन की बात टालने की कोशिश की। फिर दोस्त की ज़िद्द के आगे झुकते हुए कहने लगा "हाँ गया था इंटरव्यू के लिए और इंटरव्यू के बाद इंटरव्यू लेने वाले साहब के चपरासी ने बताया कि साहब का ध्यान रखने वाले का ही चयन होगा।"
"कैसा ध्यान मोहन मैं कुछ समझा नहीं?" -बीच में ही मोहन को रोकते हुए सोहन ने पूछा। फिर मोहन ने बताया कि यार आजकल प्रतिभा की क़द्र कहाँ है, हर जगह तो रिश्वत चल रहा है। अब मैं कहाँ से लाऊँ रिश्वत देने के लिए पैसे? मेरे पास सिर्फ़ गाँव में कुछ पुश्तैनी ज़मीन हैं वो भी ऊसर बंजर।

मोहन की परेशानी को समझते हुए सोहन ने कहा- "बस इतनी सी बात! तुम्हारा ये दोस्त किस दिन काम आएगा तुम्हारे। गाँव में मेरी हाईवे के पास ज़मीन है उसे बेचकर मैं पैसों का इंतज़ाम कर दूँगा। तुम नौकरी लगने के कुछ सालों बाद मुझे दूसरी ज़मीन ख़रीदकर दें देना।"
पहले तो मोहन स्तब्ध हो सोहन की तरफ देखता रहा। फिर सोहन ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- "मोहन जानता हूँ, रिश्वत लेना-देना दोनों ग़लत है। लेकिन अभी तुम्हेंं नौकरी की बहुत ज़रूरत है और तुम इस मौक़े को मत जाने दो अपने हाथों से।" मोहन ने सोहन के इस अहसान पर हाथ जोड़ते हुए कहा- "मित्र! तुम्हारा ये उपकार मैं कभी नही भूलूँगा और नौकरी लगते ही तुम्हें इसके बदले में शहर में इससे क़ीमती ज़मीन ख़रीदकर दूँगा।"
सोहन नेे बीच में टोकते हुए कहा- "तुम इसकी टेंशन ना लो। मैं कल सुबह ही गाँव जाकर साहूकार से हाईवे वाली ज़मीन का सौदा कर पैसे ले आता हूँ।"

अगली सुबह सोहन गाँव के ज़मीन का सौदा कर उसका पैसा मोहन के हाथों में देते हुए कहता है, "मित्र अब देर मत करो और इस पैसें को बाबू के चपरासी को दे आओ।" मोहन ने भी ऐसा ही किया और क्लर्क की नौकरी पा गया।

अब शहर में मोहन क्लर्क की नौकरी से और गाँव में सोहन व्यवसाय से अपना जीवन बिताने लगा। कुछ सालों बाद अचानक एक दिन सोहन को अपने धंधे में बड़ा नुकसान हुआ और उसका व्यवसाय बंद सा हो गया, धीरे-धीरे कुछ महीनों में जमा पूँजी भी ख़त्म हो गई।
इस हालत में सोहन को मोहन की याद आई और अगले सुबह उसके घर जा पहुँचा और मोहन को अपनी बात बता पूर्व के वादे अनुसार शहर में ज़मीन और व्यवसाय हेतु कुछ नकद पैसे की सहायता माँगी। मोहन ने सोहन को कुछ दिन रुक कर आने को कहा। कुछ दिन बाद आने पर मोहन ने फिर टालते हुए सोहन को फिर से कुछ दिन रुकने को कहा। ऐसे कई महीने बीत गए और एक दिन सोहन की घरवाली ने सोहन को ताने मारते हुए कहा कि "क्या हुआ, बहुत पुल बाँधते थे अपनी दोस्ती का, अब क्या हुआ? तुमने जिस मोहन की नौकरी के लिए अपनी पुश्तैनी कीमती जमीन तक बेंच दी, वही मोहन आज तुम्हें झूठी दिलासा दें टाल रहा है।" सोहन ने अपनी बीवी को समझाते हुए कहा- "मोहन मित्र है मेरा, उसकी मदद करना फ़र्ज़ था मेरा। संतपुरुष भी कहते है जो लोगों की मदद करते है उसकी मदद ऊपर वाला करता हैं।"

अगली सुबह सोहन फिर मोहन के घर गया और उससे कहा कि "मोहन, तुम पैसों की मदद नही कर सकते तो तुम्हारी नौकरी के समय जो तुमने मेरे हाईवे वाली ज़मीन के बदले में शहर में ज़मीन देने को कहा था वही दें दो ताकि मैं उसपर कुछ व्यवसाय का कार्य कर अपना जीवन बीता सकूँ।" इस पर मोहन ने जवाब देते हुए कहा- "सोहन, मेरे पास इतने फ़ुज़ूल पैसे नहीं जो तुझे शहर में ज़मीन ख़रीदकर दूँ। मेरे लिए तुमने गाँव की ज़मीन बेची थी। तुम चाहो तो उसके बदले में तुम मेरे गाँव की पुश्तैनी ज़मीन ले सकते हो।" यह सुनकर पहले तो सोहन अवाक सा होकर मोहन की तरफ़ देखता रहा, फिर ख़ुद को सम्भालते हुए कहा- "दोस्त! मैं तो तुम्हारे ज़रूरत के दिनों में अपनी क़ीमती हाईवे की ज़मीन बेचकर तुम्हारी मदद की थी और तुम मेरे ज़रूरत के वक़्त उसके बदले मुझे अपनी ऊसर बंजर ज़मीन दें रहे हो।" इस पर मोहन ने कहा- "देख सोहन! मेरे पास फ़ालतू बातों के लिए समय नहीं हैं। और हाँ, इसके अलावा मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।"

क़ीमती हाईवे से सटी ज़मीन के बदले गाँव में ऊसर बंजर ज़मीन पा ख़ुद को ठगा महसूस कर रहा था सोहन। अब वह करता भी तो क्या करता इसे भाग्य का खेल मान उस ज़मीन को खेती योग्य बनाने के लिए दिन-रात मेहनत करने लगा। एक दिन खेत में काम करते हुए उसे लगा की उसकी कुदाल किसी कठोर चीज़ से टकरा रही हैं। जब उसने उस जगह की मिट्टी हटाया तो पाया वहाँ एक चाँदी का घड़ा गड़ा था, जिसमें करोड़ों रुपए की बहुमूल्य सोने-चाँदी की अशर्फ़ियाँ थीं। इसे देख सोहन की आखें चमक उठी, और एकाएक मुँह से निकल पड़ा कि "कर भला तो हो भला।"


रचनाकार : अंकुर सिंह
लेखन तिथि : 6 जुलाई, 2021
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें