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कर्मवीर बनता विजेता कर्मपथ (कविता) Editior's Choice

रावण ब्राह्मण ही नहीं वेदज्ञ था,
महाकर्मवीर, पर अहंकारत्व था।
वैज्ञानिक दार्शनिक बलवन्त था,
विश्वविजेता, पर खल शापग्रस्त था।

बहन अपमानित फलाफलक क्रोध था,
ईशावतार श्रीराम मन बोध था।
किसी भी तरह वह चरित्रहीन न था,
अपहृत सीता लंका में छुआ न था।

वह रावण असुर कुलीन दौहित्र था,
जन्मकर्म द्विजश्रेष्ठ ज्ञानी पवित्र था।
सम्मानित सम्मान करता शत्रु था,
राजनेता प्रणेता शिवभक्त था।

महाकाल शत्रुंजय रण लंकेश था,
शापग्रस्त महाज्ञानी असुरेश था।
सीता नार्यशक्ति से रावण विज्ञ था,
बहन का प्रतिकार हेतु अनभिज्ञ था।

जाति धर्म बाधा नहीं पथ कर्म था,
अपनों के छल छद्म घायल मर्म था।
शत्रु राम स्वर पल पल मुखर लंकेश था,
शूरवीर सत्यव्रती कर्म शिखर था।

दलितों का महाराज रावण विप्र था,
श्रीराम से भी प्रशंसित सद्मित्र था।
अहंकार भुजंग विष से भरा था,
सूर्पनखा अपमान कारण लड़ा था।

शबरी तपस्विनी राममय हृदय था,
जूठन बेर क्षत्रिय शिरोमणि खाद्य था।
एक को भक्ति से राम पद मिला था,
रण में लंकेश को रामपद मिला था।

भक्ति प्रीतिलता शबरी मन राम था,
प्रतिक्षण मुखर रावण स्मृति में राम था।
साधक युगल कर्मयोग पथ अटल था,
एक थी राममय, अपर शिवभक्त था।

असुर रावण दशानन शिव मान था,
कुबेर का भाई अति बलवान था।
दुर्जेय तिहुँ लोक में शक्ति भक्त था,
शापित विष्णु विरोधी रामाशक्त था।

रावण भी मनुज दोष से आशक्त था,
राजर्षि होकर भी दानव रक्त था।
प्रतिशोधानल में अविवेकी बना था,
नार्य समादर सिया दूरी खड़ा था।

रावण लंकेश्वर पुरोधा निडर था,
कर्मवीर आलोक से जग निखर था।
अशोकवन सिय मातु रक्षक बना था,
तनिक न हो क्लेश सिय भावुक सना था।

श्रीराममय द्विजवर रावण चित्त था,
दार्शनिक नीतिज्ञ वैदिक वृत्त था।
अनभिज्ञ राम को मनुज मानता था,
कायर न लंकेश युद्ध विजेता था।

स्वार्थी होता मनुज गढ़ दलित पद,
अतीत महापुरुषों को बाॅंट दलित पद।
वाल्मीकि व्यास संजय दासराज सम,
भील कपि मीत गिद्ध राघव साज थे।

कर्म को कभी न जाति से सम्बन्ध था,
गौकर्ण विश्वामित्र भी बह्मर्षि था।
क्षत्रिय जनक राजर्षि विश्व श्रेष्ठ था,
विदुर तो कुरुकुल महामति ज्येष्ठ था।

मृगतृष्णा भौतिक जगत जब जग धॅंसा,
जाति धर्म भाषा तिमिर में जा फॅंसा।
करुणा दया ममता क्षमा बचे कहाँ,
कर्मपथ विमुख पा मनुज सत्ता जहाँ।

आज जग रावण बहुत शासक प्रजा,
कौन ब्राह्मण है दलित गणना यहाँ।
कर्मवीर शासक प्रजा बनता दलित,
राष्ट्रपति मंत्री प्रमुख बने हैं जहाँ।

पौरुष नित होती विजय संसार की,
चाणक्य से चन्द्रगुप्त सम्राट भी।
दे अँगूठा एकलव्य जगश्रेष्ठ भी,
पुरुषार्थ सत्पथी दमकता पार्थ भी।

श्रीराम श्रीकृष्ण बुद्ध महावीर भी,
जन्मना द्विज थे नहीं हैं सम्पूज्य ही।
सप्तर्षि जग पौरुष बल से समादृत,
कर्म नित होती विजय बिन जाति की।

हनुमान मर्कट भी जगत सम्पूज्य है,
जग गजानन विघ्नेश बन स्तुत्य है।
नन्दी शिवगणप्रमुख भी था दलित,
वाहक हरि खगराज गरुड़ महत्त्व है।

हो प्रगति चहुँ दिशि सदा सत्कर्म पथ,
तज ग्लानि मन दुर्भावना स्वार्थ विवश।
तज रावण मद, ले विप्र सद्गुण सकल,
रख मनुजता अमोल यश जो कर्मपथ है।

कर समादर नार्यशक्ति ममता हृदय,
हो ऋणी मातु प्रकृति धरती माँ सदय।
रख भक्ति प्रेम जन्मभूमि राष्ट्र उदय,
कर्म राष्ट्र पथ सारथी श्रीकृष्ण था।

कर्मवीर बनता विजेता कर्मपथ,
जाति धर्म बनते न बाधा धर्मपथ।
कपट अहं प्रतिशोध रावण तजो मन,
हुआ अमर शहीद रण कर्मवीर था।


लेखन तिथि : 18 दिसम्बर, 2022
            

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