देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

कर्मवीर मास्टर (नज़्म)

मिरी मसर्रतों से गुफ़्तगू कर ज़ीस्त ने कुछ यूँ फ़रमाया हैं,
ज्ञानमन्दिर में आकर हयात ने हयात को गले लगाया हैं।

सोहबत में तेरी ए पाठशाला ये धन कमाया हैं,
इस परिसर में बच्चों संग ख़ुद को आज़माया हैं।

घर से निकलकर विद्यालय में परिवार को पाया हैं,
गुड मॉर्निंग, नमस्कार के साथ आशीर्वाद भी झोली में आया हैं।

अध्यापन की कसौटी पर मेहनत को शिखर दिखाया हैं,
शिक्षक का पेशा क्या होता हैं?
मैंने तो नौनिहालों के माथे पर मंज़िल को सजाया हैं।

पढ़ते-पढ़ाते मैं इतना पढ़ बैठा, इल्म ने मेरे इस मंदिर का घण्टा बजाया हैं,
सरगम के सातों स्वर माँ की वाणी से निकले, जब हर कालांश मैंने पढ़ाया हैं।

जब भी लगा थकावट से मेरा दिमाग़ चकराया हैं,
बच्चों की मोहक मुस्कराहटों ने ताज़गी का पान कराया हैं।

स्कूल में परिवार की कमी जहाँ महसूस हुई, स्टाफ़ आया हैं,
यहाँ कितना अपनापन मिला, ट्रेनिंग में ये सब कहाँ पाया हैं।

बच्चों, छू लो आसमाँ, ऊँची उड़ान का सपना दिखाया हैं,
जो थी ज्ञान की पोटली, उसका हर रंग बच्चों को दिखाया हैं।

कैसे करते हैं उपस्थिति रजिस्टर में, ये भी स्टाफ़ ने सिखाया हैं,
ख़ुद को मेहनत के साँचे में तपाकर मैंने भी परिपक्वता का जलवा दिखाया हैं।

बन जाऊँ मैं बच्चों के हाथों की रेखा, मुक़द्दस ख़्याल आया हैं,
ये कर्मवीर डॉक्टर बनादे, ये कर्मवीर बना दे कलक्टर,
बच्चों के नन्हें हाथों की जड़ों में कर्मवीर ने अपना पसीना बहाया हैं।


लेखन तिथि : 15 जनवरी, 2020
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें