उनको बिल्कुल
आता नहीं
सलीक़ा।
घुटन भरे
जीवन में
खुला झरोखा।
चारों खाने
चित्त हुआ
है धोखा।।
घर से
ज्यों ही निकला
कोई छींका।
किरणें भानु
की रूपवती
लग रहीं।
मंदिर का
घंटा बजता
दूर कहीं।।
धेला भर
आश नहीं
करते टीका।
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