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काश मैं भी एक गुलाब होता (कविता)

काश मैं भी एक गुलाब होता
तो उनके दिल की सल्तनत का नवाब होता,
महका देता उनके मन का कोना-कोना
इस गुलाब की तरह मैं भी लाजवाब होता।

सब की आरज़ू होती उन्हें पाने की
मगर मुझे पाने का उनको सिर्फ़ ख़्वाब होता,
उनकी हथेलियाँ भी इत्र सी महकती
मुझे बाहों में भरने का यह जवाब होता।

मुझे होठों से लगाकर वह चूमते
बदले में उनके होठों पर मेरा रंग लाजवाब होता,
ख़ुश होकर जब मुझे जूड़े में लगाते
मुझे ख़ुद पर फ़ख़्र बेहिसाब होता।

अगर बिखेरते मेरी पंखुड़ियाँ
तो उनका बिस्तर नसीब होता,
इससे अच्छा और क्या होता
रात को भी मैं उनके क़रीब होता।

अगर रश्क होता चाँद को
तो वह भी बेनकाब होता,
अपने चाँद में चार चाँद लगाता
काश मैं भी एक गुलाब होता।


रचनाकार : आशीष कुमार
लेखन तिथि : 5 फ़रवरी, 2022
            

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