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कवि भाव (कविता)

कवि भाव कविता में,
नित भावुक कर देता है।
हर अभाव-भाव उर नित,
प्रभाव-भाव भर देता है।।

कवि क़लम-सरासन, शब्द-बान,
जब, तरकस भर लेता है।
सद्भाव सबल शब्द वार कर,
तन-मन छिद्रित कर देता है।।

दुर्भाव-रुधिर तन अंग बहा,
बाहर कर देता है।
मिथ्या की मात व विजय सत्य,
वह तय कर देता है।।

चेहरे को आइने के, सम्मुख
सीधे धर देता है।
दिखावटों औ हक़ीक़तों में,
अन्तर कर देता है।।

बुरे दिलों में अच्छाई का,
विचार भर देता है।
ज्ञान-ज्योति उर जला,
अज्ञान-तम सब हर लेता है।।

नीरस में भी कवि भाव,
नित रस भर देता है।
भिन्न-भिन्न, बिच्छिन्न, मिला
एकत्र कर देता है।।

पहुँचे नैंन न रवि के जंह,
वंह भ्रमण कर लेता है।
जड़ को भी कुछ पल को,
कवि चेतन कर देता है।।

क्रोध-अनल को धैर्य-वारि,
शीतल कर देता है।
पय का पय, पानी का पानी,
कवि कर देता है।।

पिघला कर पाषाण हृदय,
सुमन-कोमल कर देता है।
बैमनष्य के बीज बिनष्ट,
प्रेममय क्षिति कर देता है।।


लेखन तिथि : दिसम्बर, 2020
            

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