देखो वह क्षुब्ध पड़ी है,
और क्लांत भाव में रहती।
प्रिय के विलाप में देखो,
वह हृदय वेदना सहती।
बह रही धार अश्रु की,
गिर रही आज वह नीचे।
कह रही स्रोत वह निर्झर,
पदचिन्ह वह किसके सींचे।
अधरों को खोल बोलती,
है आज हृदय धन खोया।
उड़ गए प्राण वो उसके,
है पूर्ण आज तन खोया।
है मौन पड़ी वह देखो,
कल तक जो हाथ गही थी।
जहाँ प्रेम, हास थे गहने,
शृंगार रूप में बही थी।
कह रही रुदन स्वर में वो,
अब कौन गहेगा उसको।
हे! भाव प्रवाहिनी प्यारी,
अब कौन कहेगा उसको।
कैसे वह करे प्रतीक्षा,
अब कौन करेगा राज़ी।
रिश्तों से साथ है छूटा,
कह रही कलम वह अभागी।
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