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ख़ुद से मिलने की ज़िद कर के (ग़ज़ल)

ख़ुद से मिलने की ज़िद कर के,
बैठी हूँ नज़दीक भँवर के।

आज सुकूँ से क़दम बढ़ रहे,
खिलता है दिल, रोज़ निखर के।

दोपहरी भी ठंडी लगती,
ख़ुश है दिल में, ख़ुशी ठहर के।

चलती हूँ पर पाँव न थकते,
बदले है अंदाज़ सफ़र के।

जाने-पहचाने लगते हैं,
इन्साँ इस अनजान नगर के।

मिलते हैं पग-पग पर धोखे,
ख़ूब सदा सज और सँवर के

अलग-अलग फ़ितरत के इन्साँ,
सँग हैं कुछ, कुछ गए मुक़र के।

छोटी सी दुनिया है 'अंचल',
रुकना मत दूरी से डर के।


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