रूठना हक़ तुम्हारा,
मानना फ़र्ज़ हमारा।
माफ़ कर दो अबकी,
बिन तुम्हारे मैं हारा।।
तुम जितनी रुठोगी,
हम उतना मनाएँगे।
हो जितने भी झगड़े,
तुम्हें भुला ना पाएँगे।
सुनो तुम मुझे भी ज़रा,
तुम्हारे बिना मैं अधूरा।
मैं क़लम तुम काग़ज़,
मिलकर ही होंगे पूरा।
रूठो तुम, हम मनाएँगे,
प्यार से तुम्हे सताएँगे।।
मत जाओ छोड़ के दूर,
बिना तुम्हारे रह न पाएँगे।।
ग़लती हुई, दिल दुखाया,
ग़ुस्से में आँखें दिखा लो।।
कह के दो चार बाते मुझे,
फिर से तुम गले लगा लो।
प्लीज, अब मान भी जाओ,
टीचर बनके मुर्गा बनाओ।
रूठ कर, ग़ुस्से में बात करो,
पर ख़ुद से ना मुझे दूर करो।।
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