नदिया के घाट पर
मेले की धूमधाम।
लहरें मेले की
ले रहीं बलैंया।
औरतें घूमतीं
शिशु को ले कैंया।।
है चहल-पहल मेले की
देख रही शाम।
खिलौने, झूले,
जादू का खेल है।
सर्कस में साँप-चूहे
का मेल है।।
छलका रही रात रानी
ख़ुशबू के जाम।
भालू और बंदर का
नाच चल रहा।
बेक़ाबू भीड़ का है
रेला बहा।।
है देख रहा मेला ज्यों
देश का अवाम।
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