लड़कों के झुण्ड में
एक बच्ची खेलती थी
लड़के लड़की को हराने के लिए
हथकंडे अपनाते थे,
लड़की होने का ताना देते थे
लड़की जब हारती नही थी
तब लड़के
एकजुट होकर हावी हो जाते।
एक लड़के ने कहा-
"तू भी लड़कियाँ बुला ले"
लड़की चारों तरफ़ देखने लगी
न कोई सखी सहेली
न कोई बहन
आख़िर इस बस्ती में लड़कियाँ नही है क्या?
अचानक बदहवास दौड़ती हुई
अपनी माँ के पास पहुँची
"माँ लड़कियाँ कहाँ
इस बस्ती में अकेली हूँ क्या मैं?"
माँ निरूत्तर थी,
आँखें बरस रही थी
"इसे कैसे समझाऊँ,
कैसे आईना दिखाऊँ समाज का!"
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