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लिखता हूँ (कविता)

समाज में हो ऐसा बदलाव लिखता हूँ,
मोहब्बत आए मुल्क में वो सैलाब लिखता हूँ।

टूटती चुप्पियों की बन आवाज़ लिखता हूँ,
वंचित और मज़दूरों के जज़्बात लिखता हूँ।

मोहब्बत बनी रहे मुल्क में वह पैग़ाम लिखता हूँ,
स्वतंत्रता समता भारत की वो पहचान लिखता हूँ।

नहीं कुछ भी बनावटी है सही हालात लिखता हूँ,
रूठे हुए दिलों की मुलाक़ात लिखता हूँ।

राष्ट्र निर्माण में भूमिका जिनकी बात लिखता हूँ,
"समय" क़लम की भी ज़िम्मेदारी वह सवालात लिखता हूँ।


रचनाकार : समय सिंह जौल
लेखन तिथि : 3 अक्टूबर, 2021
            

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