हम अँगूठा
छाप हैं
वे हैं
बिल्कुल ठेठ!
देशी भाषा
में सम्मोहन!
होता है
इसका ही दोहन!
पानी फिरा
उम्मीद पर
करे मटियामेट!
शहरों में
चलती हैं कारें!
देहातों की
देह उघारें!
लू लपट की
शर शैया
पड़ा हुआ
है जेठ!
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