पिता जिनके राणाउदय सिंह,
और दादो सा राणा सांगा थे।
जयवन्ता बाई माता जिनकी,
प्रताप महाराणा कहलाए थे।।
शिष्टता, दृढ़ता एवम् वीरता,
जिसकी प्रताप ये मिसाल थे।
मुग़ल के ख़िलाफ़ लड़ने वाले,
एक अकेले बहादूर योद्घा थे।।
अपनो के प्रेमी एवं देश-प्रेमी,
आज़ादी अलख जगाने वाले।
जीवन अंत तक संघर्ष करना,
ना आत्मसमर्पण करने वाले।।
महारानी अजबदे के भरतार,
मिलकर वो भीलों के सरदार।
रचे अनेक क़िस्से व इतिहास,
प्रताप बनें सभी के मददगार।।
विरोधियों का सामना किया,
हल्दी घाटी मैदान साक्षी रहा।
कई राजपूत इनके शत्रु हुए,
पर मेवाड़ राज्य स्वतन्त्र रहा।।
अकबर के पास अपार सैना,
लेकिन युद्ध से प्रताप डरे ना।
साथ रहा चेतक उनके घोड़ा,
महाराणा से डरी मुग़ल सेना।।
क़िस्से कहानी के किरदार हुए,
सुपुत्र अमरसिंह बलवान हुए।
जन्मे प्रताप दुर्ग-कुम्भलगढ़ में,
09 मई, 1540 भारत वर्ष में।।
जीवन में किए अनेकों ये युद्ध,
मिला न उन्हें कभी कोई सुख।
घायल भी अनेक बार यह हुए,
देश प्रेमी प्राण न्योछावर किए।।
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