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मैं भारत हूँ भरत वंश का (कविता) Editior's Choice

मैं भारत हूँ भरत वंश का,
मेरा गौरव गान सुनो।
अलंकार से सदा सुशोभित,
मेरा तुम अभिमान सुनो।

स्वाभिमान के चिन्हों पर चल,
वर्तमान बन बोल रहा।
निज अस्तित्व बताने को ही,
अधरों को मैं खोल रहा।

मैं भारत जिसके किरीट वह,
स्वयं हिमालय धार रहा।
मैं भारत जिनके चरणों को,
स्वयं ही सिंधु पखार रहा।

मैं भारत जिनके वेदों का,
प्रखर तेज है चमक रहा।
मैं भारत वह जहाँ का दर्शन,
विश्व पटल पर दमक रहा।

मैं भारत वह जहाँ सभ्यता,
संस्कृति वही पुरातन है।
मैं भारत वह जहाँ प्रकाशित,
ज्योति धर्म सनातन है।

मैं भारत जहाँ राम कृष्ण भी,
बाल रूप में आए थे।
मैं भारत जहाँ ऋषि मुनियों ने,
यज्ञ कई करवाए थे।

मैं भारत जहाँ आर्यभट्ट का,
शून्य शिखर था लहराया।
मैं भारत वह जहाँ योग का,
ज्ञान विश्व ने अपनाया।

मैं भारत वह जहाँ व्याकरण,
पाणिनि का विख्यात हुआ।
मैं भारत वह जहाँ चरक का,
आयुर्वेद प्रख्यात हुआ।

मैं भारत जहाँ भीष्म प्रतिज्ञा,
और वह दानी कर्ण हुआ।
मैं भारत जहाँ अमृतसर का,
पूजित मन्दिर स्वर्ण हुआ।

मैं भारत जहाँ गंगा-यमुना,
की वह पावन धारा है।
मैं भारत जहाँ स्वयं राम ने,
शबरी को भी तारा है।

मैं भारत जहाँ एक गाँठ में,
सब धर्मों का संगम है।
मैं भारत जहाँ दिव्य ज्योति का,
दृश्य बड़ा विहंगम है।

मैं भारत जहाँ गुरु शिष्य का,
सत्य ज्ञान परिचायक है।
मैं भारत जहाँ राष्ट्रगान वह,
जन-गण-मन अधिनायक है।

मैं भारत जहाँ महावीर,
गौतम ने स्वयं को शुद्ध किया।
मैं भारत जहाँ धर्म रूप में,
पाण्डव कुल ने युद्ध किया।

मैं भारत जहाँ चेतक वाला,
राणा वह हल्दीघाटी।
मैं भारत जहाँ वीर शिवाजी,
बलिदानों की वह माटी।

मैं भारत जहाँ झाँसी रानी,
राष्ट्रप्रेम और वह भक्ति।
मैं भारत जहाँ मिटे वीर वो,
गोरा-बादल की शक्ति।

मैं भारत जहाँ बाबा तुलसी,
मानस को कर गए अमर।
मैं भारत जहाँ सूरदास,
मीरा की भक्ति हुई अमर।

मैं भारत जहाँ केदारनाथ,
बद्रीनाथ का धाम भी है।
मैं भारत जहाँ मथुरा-काशी,
और अवध की शाम भी है।

मैं भारत जहाँ जल-अग्नि भी,
देव तुल्य पूजे जाते।
मैं भारत जहाँ वायु-सूर्य और,
शिलाखण्ड पूजे जाते।

मैं भारत जहाँ लौंग-इलायची,
काश्मीर की केसर है।
मैं भारत जहाँ रामसेतु वह,
और पावन रामेश्वर है।

मैं भारत जहाँ कल्पवृक्ष और,
नाग को पूजा जाता है।
मैं भारत जहाँ अन्न सदा ही,
देव सा पूजा जाता है।

मैं भारत जहाँ रक्षाबंधन,
भाई-बहन का है त्योहार।
मैं भारत जहाँ रिश्तों का,
गठबंधन और मिलता प्यार।

मैं भारत जहाँ इसरो ने,
मंगल का सफ़र कराया है।
मैं भारत जहाँ लघु उपग्रह,
अंतरिक्ष तक पहुँचाया है।

मैं भारत जहाँ तानसेन,
ख़ुसरो की अमर कहानी है।
मैं भारत जहाँ देश प्रेम वह,
वीरों की क़ुर्बानी है।

मैं भारत जहाँ स्थापत्य वह,
कला और संस्कृति आधार।
मैं भारत जहाँ नृत्य कलाएँ,
गायन शैली का उपहार।

मैं भारत जहाँ मंदिर मस्जिद,
गुरद्वारे गिरिजाघर द्वार।
मैं भारत जहाँ सब धर्मों के,
त्योहारों की लगे बहार।

मैं भारत जहाँ कुरान-बाईबल,
गुरुग्रंथ-गीता का सार।
मैं भारत जहाँ हिन्दू-मुस्लिम,
सिख-ईसाई का है प्यार।

मैं भारत जहाँ रीति-नीति का,
सर्वसम्मति पालन है।
मैं भारत जहाँ पन्ना धाय का,
त्याग ही सच्चा लालन है।

मैं भारत जहाँ संस्कार वह,
और बुज़ुर्गों का सम्मान।
मैं भारत जहाँ हँसते-हँसते,
वीर लुटाते अपनी जान।

मैं भारत जहाँ जय जवान वह,
जय किसान का नारा है।
मैं भारत जहाँ तीन रंग का,
अमर तिरंगा प्यारा है।

मैं भारत जहाँ हिंदी गौरव,
और निराला पंत हुए।
मैं भारत जहाँ महापुरुष वे,
और वे सूफ़ी संत हुए।

मैं भारत जहाँ पूरब-पश्चिम,
उत्तर-दक्षिण विजित दिशा।
मैं भारत जहाँ प्रातः पूजित,
और वह पूजित स्वयं निशा।

मैं भारत जहाँ गाँधी-नेहरू,
वल्लभ भाई पटेल हुए।
मैं भारत जहाँ सीताराम,
राधे-कृष्ण के मेल हुए।

मैं भारत वह जहाँ भगत सिंह,
चंद्रशेखर आज़ाद हुए।
मैं भारत जहाँ युद्ध हेतु ही,
अगणित ही शंखनाद हुए।

मैं भारत जहाँ अटल बिहारी,
और कलाम विज्ञान हुए।
मैं भारत जहाँ बरछी भाला,
अमर वे तीर कमान हुए।

मैं भारत वह जहाँ केसरिया,
साफ़ा सर पर बँधता है।
मैं भारत जहाँ हर योद्धा वह,
शत्रु सम्मुख तनता है।

मैं भारत जहाँ पूजनीय वह,
होता अतिथि देवो भव।
मैं भारत जहाँ सदा गूँजता,
जय भारत माता का रव।

मैं भारत जहाँ हर शहीद को,
कफ़न तिरंगा मिलता है।
मैं भारत जहाँ देशभक्ति में,
हर तन रंगा मिलता है।

मैं भारत जहाँ वंदे मातरम्,
सत्यमेव जयते का गान।
मैं भारत जो विश्व गुरु है,
अखण्डता जिसकी पहचान।


लेखन तिथि : 13 अगस्त, 2022
            

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