कुशीनगर, उत्तर प्रदेश | 1911 - 1987
मैं देख रहा हूँ झरी फूल से पँखुरी —मैं देख रहा हूँ अपने को ही झरते। मैं चुप हूँ : वह मेरे भीतर वसंत गाता है।
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