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मैं धरा हूँ (कविता)

बाहों में सृष्टि घिरी
सरित सिंधु व गिरि
शेषनाग शीर्ष धरी
मैं धरा हूँ।

सौरमंडल का ग्रह
वारि भू मय विग्रह
द्वय ध्रुव हिम संग्रह
मैं धरा हूँ।

खेत वन व उद्यान में
निर्झर व जलवान में
तृण विरवा विवान में
मैं धरा हूँ।

जीव जन्तु व प्राणी
विविध भाषा वाणी
भिन्न ऋतु कल्याणी
मैं धरा हूँ।

दृश भूगर्भीय साक्ष्य
जैव विविधता नाट्य
प्रजातियों का प्राप्य
मैं धरा हूँ।

चाँद व सूरज निहारे
नयनों के समक्ष तारे
ग्रह उपग्रह संग सारे
मैं धरा हूँ।

विकट तपिश की मार
ज्वार भाटा का प्रहार
बारिश हो मूसलाधार
मैं धरा हूँ।

संत ऋषि व मुनियों की
श्रमी कृषक गुनियों की
बाल वृद्ध नर नारियों की
मैं धरा हूँ।।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 30 नवम्बर, 2021
            

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