देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

मौत का तांडव (नज़्म)

दिख रहा मौत का कैसा तांडव,
हाय ये किसने क़यामत ढाया।

बेबसी क्यूँ कर दी कुदरत तूने,
हाय कैसा ये कैसा क़हर छाया।

मौत की चीखें सुनी हैं हर जगह,
सोचती हूँ ये बुरा ख़्वाब आया।

उजड़ती मांग कितनो की किसी की गोद की सूनी,
हुए बरबाद कितने घर कौन है ये ज़हर लाया।

यतीमो की लगा दी भीड़ दुनिया पर,
वक़्त का कैसा ये तन्हा सफ़र आया।

अश्क सैलाब बनकर बह रहे हैं,
हर कोई है डरा सहमा पाया।

ख़ौफ़ का डेरा जमा है हर जगह,
जिस तरफ़ देखा वहीं दहशत पाया।

कही तड़पन दिखी है भूख की,
बेइंतहा है कहीं ग़ुरबत पाया।

मास्क के पीछे छिपे चेहरे देखे,
हाथ से जेब तक साबुन पाया।

हर कोई एक दूजे से डरा है,
जिस तरफ़ देखा वही मंज़र पाया।

बेबसी कैसी दी कुदरत तूने,
हाय कैसा ये क़हर छाया।

दिख रहा मौत का कैसा तांडव,
हाय ये किसने क़यामत ढाया।


लेखन तिथि : 1 अप्रैल, 2020
यह नज़्म कोरोना काल में लिखी गई थी।
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें