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मेहनतकशों की पुकार (गीत) Editior's Choice

भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

रूठ जाए मेघा तो रुठ जाने देना
डूब जाएँ तारे तो डूब जाने देना
बूँद से पसीने की खेत सींच देना
घर-घर में आशा के दीप लेस देना।
अरे, आदमी रहे ना रहे भूखी गैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

पाँव थम न जाएँ तू नाचते ही रहना
प्यार के सफों को तू बाँचते ही रहना
आँख लग ना जाए तू जागते ही रहना
हैं घात में लुटेरे तू ताकते ही रहना।
मँझधार में है नैया, संभालना खिवैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

देश की ये धरती बलिदान माँगती है
माटी आज श्रम के वरदान माँगती है
जो शीश को उठा दे वो शान माँगती है
बेटे से माँ का अभिमान माँगती है।
अरे सेर हो जो दूश्मन हो, जाना तू सवैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

हिंदू औ' मुसलमाँ की तोड़ना दीवारें
सूबे और भाषा की पाटना दरारें
नफ़रत के मन में बालना अँगारे
मुरझाए गुलशन में बाँटना बहारें।
पतझार बन ना जाना, बन जाना पुरवैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे।

मंज़िल है दूर साथी तुझको है पास जाना
रोकेंगे के राह पर्वत तू बढ़ के लाँघ जाना
आँधी तूफ़ान आएँ हिम्मत ना हार जाना
चलना तेरी कहानी चलना तेरा तराना।
आँधी हैं तेरी बहना, तूफ़ान तेरे भैया रेऽऽऽ भैया रे
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे
हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ भैया रे।


लेखन तिथि : 1965
घटना विशेष से संबंध: तत्कालीन मध्यप्रदेश के कोरबा में
निर्माणाधीन 200 मेगावाट बिजलीघर में कार्यरत था।
भारी सामग्री की लदान के लिए मजदूरों की टोली मिलकर जोर लगाने के लिए समवेत स्वर में टेर लगाती थी *हैया रे ऽऽऽ* । समवेत स्वर के माधुर्य से मेरे बीस वर्षीय मन पर
ऐसा प्रभाव डाला कि यह रचना हो ग‌ई।
– श्याम सुन्दर अग्रवाल
            

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