मेरा सफ़र भी क्या ये मंज़िल भी क्या तिरे बिन,
जैसे हो चाय ठंडी औ तल्ख़ यूँ पिए बिन।
दीद बिन आपके मेरी ज़िंदगी तो जैसे,
यूँ बतदरीज बढ़ता क़िस्सा कोई सिरे बिन।
मेरी वफ़ा को भी क्यूँ मेरी ख़ता में गिन कर,
क्यूँ मिल रही सज़ा मेरे ज़ख्म को गिने बिन।
उम्मीद है मिलन की ज़िंदा तभी तो सोचो,
ज़िंदा हूँ क्यूँ मैं अबतक ये ज़िंदगी जिए बिन।
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