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न बुझी आग की गाँठ (कविता) Editior's Choice

न बुझी
आग की गाँठ है
सूरज :
हरेक को दे रहा रोशनी—
हरेक के लिए जल रहा—
ढल रहा—
रोज़ सुबह निकल रहा-
देश और काल को बदल रहा।


            

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