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न जाने क्यों (कविता)

न जाने क्या बात है
सबको रवि रश्मियाँ भाती हैं
प्रातः बेला की,
न जाने मुझे क्यों भाती हैं
चन्द्रमा की श्वेत किरणें,
गोधूलि की बेला और
ढलता हुआ सूरज
जैसे मुझसे कुछ कहकर गया हो
कल फिर आऊँगा...
और संध्या बेला पर
ईश्वर से मन की मनभर बातें
अनकही, अनसुलझी
जिसे बेझिझक अपनी आत्मा समझ
सब शिकायत करती हूँ
और कभी बार-बार
उस अनन्त शक्ति का
धन्यवाद करते हुए
फिर से अपने कार्य में लग जाती हूँ
और फिर असंख्य तारागण
जैसे मुझसे कुछ कहना चाहते हों
रवि रश्मियों के साथ जगकर
दिनभर क्रमपथ पर थककर
तू थक गई होगी?
साँझ के आग़ोश में छुपकर
रात्रिभर विश्राम कर ले
अनगिनत भाव विचारों को पिरोकर
एक गीत, ग़ज़ल लिख ले
और कुछ गुनगुना ले
यह रात्रि तेरी है...
तू दिनभर के
कर्म बन्धनों से मुक्त होकर
मेरे आश्रय में विश्राम कर,
और भावनाओं का तकिया लगाकर
विचारों की पूँजी इकट्ठा कर
फिर से कल के लिए तैयार हो जा
रवि रश्मियों के साथ
फिर से अस्त और उदय होने को
क्योंकि मैं अस्त होने पर
फिर से उदय होना चाहती हूँ
निरन्तर टूट कर भी उठना चाहती हूँ
और हर पल तत्पर हूँ फिर से
समय चक्र संग निरन्तर चलने को
रवि रश्मियों के संग
अविरल अस्त उदय होने को।।


रचनाकार : कमला वेदी
लेखन तिथि : 30 जुलाई, 2021
            

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