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न जाने क्यूँ (कविता)

न जाने क्यूँ लोग मुझे नहीं समझते,
मेरे अल्फ़ाज़ों को नहीं पढ़ते।

मेरे तजुर्बे को उँगली दिखाते
उम्र का बहाना करके,

क्या कमी हैं मुझमें
हर वक्त यही ढूँढ़ता रहा मैं
रौशनी से जगमगाते आँगन में
सारा चिराग़ बुझाकर,

शाम को सुबह से मिलाने की जद्दोजहद में
ख़ुद को जैसे जला दिया,
राखों के ढ़ेर पे बैठ कर
न जाने कौन सा मोती मार गया।


लेखन तिथि : 5 दिसम्बर, 2021
            

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