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नई जेनरेशन (कविता)

रंग ढंग नई जेनरेशन के
हमको समझ न आए,
सदी बीस को छोड़ के
ये इक्कीसवीं सदी में आए।

देर रात तक जगने की
आदत इनके मन भाए,
नौ बजे के बाद ही इनकी
गुड मॉर्निंग हो पाए।

शर्ट-पैंट ये नहीं पहनते
इन्हें टी-शर्ट जीन्स ही भाए,
फटी जीन्स दाड़ी कपड़ों में
कूल लुक कहलाए।

चाचा -चाची बुआ -फूफा
कहने में ये शर्माएं ।
बोलकर अंकल-आंटी
सबको ये मॉडर्न कहलाएँ।

छोटी जगह में रहना
इनको बड़ा कष्ट पहुँचाए।
देख शहर की चकाचौंध
इन्हें शहर में रहना भाए।

हिन्दी बोलन में शर्माएँ
अंग्रेजी गले लगाएँ।
अपनी माता को छोड़ के
ये स्टेप मदर अपनाएँ।

रिश्ते नाते नहीं मानते
दोस्त ही मन में भाए,
अपनों से ये बात करें न
दूजों से बतियाएँ।

पापा-मम्मी नहीं बोलते
मोम डेड कहलाएँ,
भाई बहिन आपस में
सिस-ब्रो बन जाएँ।

घर परिवार के रिश्तों
और बूढ़ों से ये कतराएँ,
रिश्ते वही निभाएँ जो
इनके मन को भाएँ।

बड़ों के पैरों को छूने में
इनको शर्म है आए,
हैलो हाय करके ये
अपना शिष्टाचार निभाएँ।

बर्थ डे घर में नहीं मनाते
होटल में ये जाएँ,
घर के देशी व्यंजन छोड़
ये पिज़्ज़ा बर्गर खाएँ।

चाय छाछ पीने वाले तो
बैक वार्ड कहलाएँ,
सिगरेट और शराब पिएँ
तो फारवर्ड बन जाएँ।

खेलकूद इनको न भाए
इससे ये कतराएँ,
नेट-टेब मोबाइल में
ये अपना समय बिताएँ।

बड़ी विडंबना है इनकी
अब इन्हें कौन समझाए?
विश्व में भारत की संस्कृति
ही सर्वश्रेष्ठ श्रेष्ठ कहलाए।


  • विषय :
लेखन तिथि : 9 अगस्त, 2020
            

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