सूरज झाँके भोर भए,
गली-गली शोर हुआ।
कीचड़ में हुए तर बतर,
पहलवान भी मग्न हुआ।।
नए नए पकवान बने,
झांज मंजीरा भी बजे।
नाग पंचमी ख़ुशियाँ लाई
घर द्वार सुंदर सजे।।
पतलू छोटू मोटू निकले,
लेते दम्भ भरते हुंकार।
दंगल के अखाड़े में,
उठा पटक मची हाहाकार।।
सावन के महीने में,
शिव बाबा के प्यारे नाग।
पूरी करते मनोकामना
सबके हरले दुख संताप।।
विष्णु का शेषनाग यह,
धरा बनाए सर का ताज।
महादेव का आभूषण यह,
घरो घर पूजे जाते आज।।
मान करे संस्कृति की हम,
पूजे पौधे जीव सभी।
ख़ुद जीए और जीने दे
मानवता का हो धर्म यही।।
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