नारी सदैव
देश, धर्म औ' आन
परिचायिका।
ममता, स्नेह
वात्सल्य, दया, क्षमा
साक्षात रूप।
नारी नदी सी
जीवनदायिनी है
गतिमान है।
नारी वर्षा सी
सींचती, तृप्त करे
रसपगा है।
नारी ऊर्जा है
सहज सहयोगी
प्रतिकार भी।
बेटी, प्रेयसी
माँ, बहन, बनके
घर सजाए।
सृष्टि कल्पना
कुटुम्ब धुरी बनी
ईश तत्व है।
टेरेसा कभी
सीता, अनुसूईया
सब में त्याग।
विदुषी, योद्धा
जप, तप, त्याग है
नारी निडर।
सृजनशील
अथक मज़दूर
सहनशील।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें