उठो शेरनी संगठित होकर,
फूलन को अब याद करो,
अस्मत लूट रहे जो शातिर,
उनको अब बर्बाद करो।
करो सामना गद्दारों का,
तुम वंशज झलकारी की,
22 शातिर मार गिराए,
फूलन जब हुंकारी थी।
सीना छलनी कर दो उसका,
तुम पर आँख उठाए जो,
सबक़ सिखा दो ग़द्दारों को,
तुम पर जाल बिछाए जो।
अदम्य साहस है तुम में नारी,
हैवानों को दिखला दो,
बदला लेना तुम भी जानो,
शैतानों को बतला दो।
तड़प-तड़पकर मरी मनीषा,
बेटी जो मर्दानी थी,
मिटा के रख देंगी हम नारी,
जो पुरुषों ने मनमानी की।
मात, बहन और बेटी घर में,
नारी का सम्मान करो,
बेटा, भाई, बाप अगर तुम,
ना नारी का अपमान करो।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,
नारा है अंधियारे में,
जाति-धर्म की बात हो रही,
सत्ता के गलियारे में।
चारों शातिर गिरफ़्त तुम्हारी,
फाँसी पर लटकाओ तुम,
क्या मंशा शासन-प्रशासन,
हमको ज़रा बताओ तुम।
न्याय माँगती बेटी मनीषा,
क्यों ना तुम इंसाफ़ करो,
सत्ता पर क़ाबिज़ हो तुम तो,
क्यों ना नीति साफ़ करो।
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