यह एक बेचैन करने वाली रात है
जब तारे अबरख की तरह चमक रहे हैं
जब फड़फड़ाते हैं पक्षी सारी-सारी रात
इस टहनी से उस पेड़ तक
सन्नाटा है अनवरत उस पंख से भरा
जो भागने की हड़बड़ी में झड़ गए
पोखर के पानी की सतह पर
जमी हरियाली की तरह हो गई है रात
कोई बतख़ नहीं जो बहे और पानी को कँपा दे
अब रंगों से भरी हँसी भी नहीं रही
जो सपनों में खोए चेहरे पर फैल जाती जलकुंभी थी
जाड़े की धूप की तरह जो कोमल गर्म और मुलायम हो
मैं उसी सपने की तलाश में हूँ
ये सपने मैं सौंप देना चाहता हूँ हर उस आँख को
जो इतनी हताश है कि मुट्ठी में ज़हर लेकर घूम रही है।
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