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पर्दे के पीछे (लघुकथा)

शास्त्री मैदान खचाखच भरा था हिंदी पर परिचर्चा चल रही थी।
"हिंदी हमारी मातृभाषा है। इसका भाव सौंदर्य अप्रतिम है," विधायक जी अपने भाषण में बोल रहे थे।
"मेरा विनम्र निवेदन है आप सभी सम्मानित विद्वजनों आज से ही शपथ ग्रहण करें कि हम अपने समस्त कार्य तथा लेखन कार्य हिंदी भाषा में ही करेंगे," विधायक जी आग्रह कर रहे थे।
तालियों की गड़गड़ाहट से मैदान गूँज उठा। लोग विधायक जी के भाषण की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे और नारे लगा रहे थे।
"अरे अपने विधायक जी बहुत सज्जन व विद्वान व्यक्ति हैं। सुना है विदेश से शिक्षा प्राप्त की है," शर्मा जी बगल में बैठे गुप्ता जी को बता रहे थे।
"सही कह रहे हैं शर्मा जी आप, यह तो अच्छा है कि विधायक जी उच्च शिक्षा प्राप्त है इसलिए उनका मानसिक स्तर भी उच्च कोटि का है," गुप्ता जी बोले।

अचानक मौसम बदल गया अंधड़ चलने लगा। शामियाना तेज़ तेज़ हिल रहा था। तभी शर्मा जी के पास एक काग़ज़ उड़ कर आ गिरा।
"अरे! गुप्ता जी, यह तो किसी का भाषण जैसा लग रहा है," शर्मा जी बोले।
"लेकिन यह तो रोमन लिपि में लिखा है यह तो वही भाषण है जो भी विधायक जी पढ़ रहे थे," शर्मा जी हक्के-बक्के होकर बोले।
उधर मंच पर पर विधायक जी भाषण प्रति खो जाने से परेशान थे।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 17 सितम्बर, 2021
            

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