फूल, पत्तियाँ, फुनगियाँ, मधुॠतु में मदहोश।
पवन झकोरे सुरभि को, लेते हैं आगोश।।
फागुन होली से मिले, दे मीठा अहसास।
स्याही पीती गुफा में, भरने लगा उजास।।
चप्पू बिन चलती रही, संबंधों की नाव।
मानवता खोने लगा, मुस्काता सद्भाव।।
फागुन ने है कर दिया, फूलों का शृंगार।
रंग बिरंगा दीखता, है भौरों का प्यार।।
वन प्रदेश में, बाग में, छाया है मधुमास।
काजल का सुरमा लगा, बहती है वातास।।
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