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प्रलोभन (कविता)

बाहरी आकर्षण जिसे हिला नहीं सकते, बाहरी आडम्बर जिसे डिगा नहीं सकते,
कर्त्तव्य पथ पर चलते सदा, बाहरी दबाव जिसे झुका नहीं सकते,
कितनी ही बाधाएँ आए, पर क़दम जिसके कोई रुका नहीं सकते,
नमन करता हूँ आज उस ज़िंदगी को, जिसे कर्त्तव्य पथ से हटा नहीं सकते।

पाप हरेंगे, संताप हरेंगे, नए जीवन का करेंगे संचार,
जहाँ न हो कोई द्वेष, क्लेश, न हो कोई लोभ, लोलुपता, ऐसा रचेंगे नया संसार।
न होगा जहाँ कोई वैमनष्य, न होगा कोई कदाचार,
न हो कोई दुराचार, न हो पैसों का लालच, न ही हो नारी अस्मिता से बलात्कार।

न हो कोई भेद भाव, न हो कोई जात-पात, न हो धर्म के नाम पर क़त्लेआम,
ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, क्षुद्र, सभी हो एक सामान, मिले सभी को उचित सम्मान।
भाई-भाई में हो अपनापन, पिता पुत्र में न हो रोष, गढ़ेंगे ऐसा एक अनुपम उपवन,
न होगा कोई लालच, न कोई वाद विवाद, हर पल मिले एक जीवन मधुवन।

महिषासुरों का दमन होगा, मानवता का होगा कल्याण,
माँ अम्बे के आशीर्वाद से इस नवरात्र, होगा संसार में आनंद अभिराम।
सांसारिक मोह में व्यस्त इंसान को माँ दिखाएगी धर्म की सही राह,
दिग्भ्रमित समाज में जगेगी अब, माँ की अनुकम्पा से धर्म की चाह।

धरती अम्बर का होगा मिलन, देवगण पुष्प बरसाएँगे,
सारा संसार होगा धर्मस्थल, धरती पर ही स्वर्ग बसाएँगे।
सत्य निष्ठ समाज होगा, ज़िंदगी का भाव होगा, साज नया बजाएँगे,
तम का होगा विनाश, प्रकाश का होगा प्रादुर्भाव, ज्ञान भाव फैलाएँगे।

भाई-भाई में न रहेगी शत्रुता, पुत्र पिता का करेगा सम्मान, ऐसा भाव फैलाएँगे,
धर्म की बहेगी अविचल सरिता, भगवत गीता का सार पढ़ाएँगे।
फिर होगा राम राज्य, फिर अवतरित होंगे श्रीकृष्ण, पुण्य का परचम फहराएँगे,
न होगा कोई रावण, न होगा कोई कंस, चहूँ ओर शांति का चमन बसाएँगे।


लेखन तिथि : 12 अक्टूबर, 2021
            

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