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प्रतिभा (कविता)

ख़ुद को आईने में देखकर बताया कर,
तू क्या चीज़ है अहसास जताया कर।
मिट्टी की बनी सिर्फ़ एक मूरत नहीं हैं तू,
प्रतिभा भरी हैं कुट-कुट कर ये दिखाया कर।
घना अँधेरा कहकर हैं तू घबराती क्यों,
दीया नहीं तू मसाल जलाया कर।
ये तूफ़ान क्या बिगाड़ेगा तेरा,
तू हवा के रुख़ को मोड़ आया कर।
बहुत हो गया तेरी बेबसी पे रोना,
ख़ूबसूरत हैं तू, चेहरे पे मुस्कान तो लाया कर।
ज़ालिम हैं दुनिया तो रहने दो इसे
इंसाफ़ का तू दीया जलाया कर।
क़ाफ़िलों से ही नहीं पहचान बनती हैं तेरी,
ख़ुद की प्रतिभा से ज़रा क़ाफ़िला बनाया कर।


लेखन तिथि : अक्टूबर, 2020
            

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