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पुनः धर्मयुद्ध (कविता)

बस काल-काल में अंतर है,
और समय में थोड़ा परिवर्तन है।

नही तो द्युत सभा तो आज भी जारी,
और सत्ता का भरपूर समर्थन है।

धृतराष्ट्र लाख मिलेंगे तुमको
और कौरव का तो जमघट है।

राज्य बना कुरुक्षेत्र हमारा,
बस युद्ध क्रिया में अंतर है।।

देखो सत्ता में सेंध लगाने को,
फिर कोई शकुनि आया है।

चौरस मख़मली के कपड़े पर,
फिर चौसर का खेल बिछाया है।

शाम, दाम प्रपंच के बल पर
नया शिगूफा छोड़ेगा।

सम्मान सभा हो खंडित फिर से,
मन में षड़यंत्र बनाया है।।

अतः हे यज्ञ सैनी,
फिर से तुम रौद्र रूप स्वीकार करो।

दुर्योधन मन को, खंडित कर दो,
जन जन का कल्याण करो।

सहस्त्र वर्ष के इस समय काल में,
दुःशासन फिर से आया है।

केश पकड़ के खींच रहा
और चीर को हाथ लगाया है।।

हे ईश्वर मैं पूछूँ तुमसे ये दिन कैसा,
धरा पर लाए हो।

एक अबला को नग्न देखने,
मर्दो की सभा बुलाए हो?

यदि आज हनन ये चीर हुआ तो
सदियों का गौरव मिट जाएगा।

क्या स्त्री शोषण एक धर्म बने,
इसलिए घृणित द्युत बनाए हो।।

आज, मौन सभा है, मौन है राजा,
तात, भ्रात सब मौन खड़े है।

ना बोल रहा कोई मंत्री गण,
ना जन, मन में जिज्ञासा है।

ये प्रश्न बड़ा विकट खड़ा है,
इसको, विदुर सुलझाओ तुम।

अब नगर बधुओं की रक्षा कैसे
कोई उपाय बताओ तुम।।

हे माधव मैं तुमसे अनुनय करता,
तुम्ही कोई उपाय करो।

हो गिद्धराज से रक्षा जन की,
ऐसा कोई मार्ग चुनो।

धृतराष्ट्र बैठा है,
सिंहासन पर इसका भी तुम्हे भान रहे।

कि यदि धर्म युद्ध फिर आवश्यक हो तो,
उसका भी इंतिज़ाम करो।।

सहस्त्र कौरवों का रक्त पिने को,
अब वृगोदर का निर्माण करो।

हो अंग राज का सामर्थ्य खंडित,
ऐसा कोई अर्जुन चुनो।

धर्म स्थापित हो देश में,
अब हे माधव फिर से आ जाओ तुम।

कुरुक्षेत्र तैयार है धरती पर,
धर्म युद्ध के लिए, इसे पुनः चुनो।।


लेखन तिथि : 2018
            

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