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पुरवाई कुछ बोल रही है (नवगीत)

पुरवाई कुछ बोल
रही है-
पछुआ सुनती है!

हरियाली ने
भरपूर जीवन
पाया है!
बूँदें बरस रहीं
बादलों की
माया है!!

पावस की शाम
अक्सर-
इन्द्रधनुष बुनती है!

गझिन-गझिन
झाड़ी से है
गंध फूट रही!
खलबट्टे से है
अम्मा धना
कूट रही!!

मनहूस समय की घड़ियाँ
अपना-
सिर धुनती हैं!

नदी-नाले
अहंकार में
उफनाए हैं!
मानो कोकिला
पंचम स्वर में
गाए है!!

भोर में बाला
रंग बिरंगे-
फूल चुनती है!


लेखन तिथि : 2019
            

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