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रुक ना जाना तू कहीं हार के (कविता)

जीतता चल राह के हर दंश को तू मारके,
रुक ना जाना तू कहीं हार के।

तेरी मंज़िल तुझमें है ये तू जान ले,
वीर तुझसा नहीं है जहाँ में ख़ुद को पहचान ले।

ज़िंदगी की मुसीबतों से जो तू हार जाएगा,
वीर नहीं तू कायर कहलाएगा।

बाधाएँ आएँगी राह में ज़रूर पर उनसे न तुझे डरना होगा,
परिश्रम ही है सफलता की चाबी डटकर तुझे सामना करना होगा।

ग़ैर भी होंगे तेरे अपने जो तू सफल होगा,
अपने भी न होंगे तेरे अपने जो तू विफल होगा।

होता है चमत्कार को नमस्कार सदा ये तू जान ले,
ख़ास है इस जहाँ में ख़ुद को तू पहचान ले।

सींचता चल जीवन वृक्ष को बचाकर हर खरपतवार से,
रुक ना जाना तू कहीं हार के।


पुनेश समदर्शी
सृजन तिथि : 14 अप्रैल, 2011
            

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