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सजन स्वप्न में आए थे (गीत)

धीरे-धीरे नहा उठी थी,
जब अहसास कराए थे।
सखी रात की बात बताऊँ,
सजन स्वप्न में आए थे।

जब ज़ुल्फ़ों को सहलाकर वो,
खींच बाँहों में भर लिए।
सच कहूँ उठी ऐसी सिहरन,
नागिन सा मुझे कर दिए।

तन का नही मन का मिलन है,
मंत्र सरल समझाए थे।
सखी रात की बात बताऊँ,
सजन स्वप्न में आए थे।

लहरें उठी थी अति वेग में,
कैसे सँभाल पाती मैं?
बेहया पड़ गई थी निढाल,
मदमाती बलखाती मैं।

थी अजब की छुअन वो रस-रस,
अंग-अंग हरषाए थे।
सखी रात की बात बताऊँ,
सजन स्वप्न में आए थे।

ज्योहीं खुल गए मेरे नेत्र,
काम के भाव में खोई थी।
काश! अभी आ जाते झट से,
फफक-फफक कर रोई थी।

सावन पतझड़ दोनों जीवन,
सार सहज दिखलाए थे।
सखी रात की बात बताऊँ,
सजन स्वप्न में आए थे।


लेखन तिथि : 7 जून, 2022
            

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