सखी मन-मोहन मेरे मीत।
लोक वेद कुल-कानि छांड़ि हम करी उनहिं सों प्रीत॥
बिगरौ जग के कारज सगरे उलटौ सबही नीत।
अब तौ हम कबहूं नहिं तजिहैं पिय की प्रेम प्रतीत॥
यहै बाहु-बल आस यहै इक यहै हमारी रीत।
‘हरीचंद’ निधरक बिहरैंगी पिय बल दोउ जग जीत॥
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