साक्षी हो कर भी मुकर गए,
ज़मीर पल में क्यों बिसर गए।
माँ-बाप भगवान लगते थे,
आँखों से अब क्यों उतर गए।
विडियो बनाने में मशग़ूल,
बचाने से तुम क्यों डर गए।
जब सारे जुर्म क़बूल हुआ,
दंड के नियम क्यों लचर गए।
ज़िंदादिली का राज़ ज़मीर,
रौंद पैरों तले क्यों गिर गए।
कट रहे हैं रोज़ हरे पेड़,
फेर नज़रें हम क्यों मर गए।
लोगों में ज़िंदा है ज़मीर,
पर उडा़न से क्यों कुतर गए।
क़सम खा कर वादा दिया था,
समझौता बना क्यों घर गए।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें