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संविदा शिक्षक का दर्द (लघुकथा)

मास्टर साहब हमारा बक़ाया कब दोगे?
भाई दे दूँगा तनख्वाह आने दो।
अगर आप हमारे मुन्ने को कुछ दिन पढ़ाये ना होते तो कसम से हम अपना पैसा आज ही वसूल लेते आपसे।

और हाँ मास्टर साहब अच्छा हुआ थोड़े ही दिन पढ़ाए वरना वो भी आपके तरह ही उधारी के भरोसे ही जीवन जीता थू थू उधार...

कम से कम मज़दूरी करके चार पैसा तो लाता है आपकी तरह बेकार तो नहीं है।

ये बताओ मास्टर साहब आप रोज़ समय से विद्यालय जाते हो वो भी पैदल। मेहनत भी करते हो सरकारी विद्यालय में भी हो, पर तनख्वाह काहे नाय पावत हो?

हाँ एक बात और अगर ना पावत होते तनख्वाह तो विद्यालय न जाते?
वही विद्यालय में और मास्टर लोग चार पहिया गाड़ी से ठाट बाँट से जावत है और शान से जीयत है।

सच का है मास्टर साहब बताओ ज़रा आपकी ख़राब हालत देखकर मैने मुन्ने को विद्यालय जाने से रोक दिया।
दिन भर आप पढ़ते हो और पढ़ाते हो। फ़िर पैसा क्यू नहीं पाते?
ऐसी पढ़ाई -लिखाई का क्या फ़ायदा जो परिवार की आवश्यकता भी पूरी ना कर सको?

चाचा विद्यालय जा रहा हूँ वापसी में बात करता हूँ, नमस्कार!

ऐसे कैसे चले जाइव पैसा दो या जवाब दो कहीं नशा वसा में तो पैसा नाय खर्चा करते हो? पर देखने में तो सज्जन लगते हो।

चाचा जी मैं नशा नहीं करता हूँ, मै फ़िलहाल एक संविदा शिक्षक हूँ। एक ना एक दिन मेहनत से पूर्ण शिक्षक बन जाऊँगा। ईश्वर पर और ख़ुद पर भरोसा है मुझे, एक ना एक दिन मे क़ामयाब हो जाऊँगा। रही आपकी उधारी की बात तो मैं बीमार हो गया था इसलिए दे नहीं पाया।
दवाई में पैसे ख़र्च हो गए।

कई महीनों से मानदेय आया नहीं है जैसे ही आएगा दे दूँगा।
अमानत के तौर पर ये मेरी घड़ी आप रख लीजिए।
जब आपका बकाया दूँगा, घड़ी वापस दे दीजियेगा।

और हाँ मुन्ने को विद्यालय आपने मेरे हालात देखकर नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ के लिए नहीं भेजा क्योंकि हमारे विद्यालय में मेरे अलावा कोई भी संविदा शिक्षक नहीं है। मेरे अलावा आपने और शिक्षकों की क़ामयाबी जो सिर्फ़ और सिर्फ़ शिक्षा के द्वारा हासिल हुई है वो क्यूँ नहीं देखा।

सबकी कार देखते हो क़ामयाबी देखते हो वैसा ही मुन्ने को बनाने की क्यूँ नहीं सोचा।
अच्छा जीवन बिना शिक्षा के सम्भव नहीं है। आज ही से मुन्ने को विद्यालय भेजिए।

अच्छा ठीक है मास्टर साहब आप ही मुन्ने को विद्यालय ले जावा जाएँ।
आप का दुःख सुन कर बहुत दुःख हुआ पर आपकी हिम्मत देखकर विश्वास हैं आप सफल होंगे नमस्कार मास्टर साहब।


रचनाकार : शमा परवीन
लेखन तिथि : 1 फ़रवरी, 2014
            

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