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शब्दों का खेल (कविता)

शब्दों के खेल बड़े अद्भुत, इनके जज़्बे बड़े निराले,
कभी बहाते दुःख के सैलाब, कभी छलकाते सुख के प्याले।
कभी मन कड़वे हो जाते, कभी मिश्री की मिठास जगाते,
इस दुनिया की हर रचना से, शब्दों के गहरे हैं नाते।

शब्द ही तो हैं वह शिल्पकार, जो गढ़ते रचना की मूर्ति,
शब्दों से ही तो होती, लेखन में भावों की आपूर्ति।
वेद, पुराण, रामायण, महाभारत को, शब्दों से ही मिला है प्राण,
न होते शब्द सही अगर, भगवत गीता हो जाती निष्प्राण।

शब्दों से ही होती शांति वार्ता, शब्दों ने कितने युद्ध लड़ा दिए,
विश्व पटल पर शब्दों ने, जाने कितने दुश्मन भिड़ा दिए?
शब्दों की महिमा शब्द ही जाने, इनका तो अंदाज़ निराला,
कभी गुँथे केशों में फूल, कभी पिलाए मधुशाला में हाला।

जब जब शब्दों ने मर्यादा तोड़ी, तब तब रिश्तों ने गरिमा खोई,
जब जब चुभे शब्दों के वाण, मानवता तब तब बिसुर कर रोई
शब्द ही बनाते रिश्ते, शब्दों से ही रिश्ते टूट भी जाते,
शब्द हँसातें, शब्द रुलाते, शब्दों से ही बनती चाहतें और नफ़रतें।

शब्दों से हुआ शिक्षा का प्रारम्भ, शब्दों ने किया लेखन से अनुबंध,
शब्द ही रचते कविता और ग्रन्थ, शब्दों से लिखते निबंध और प्रबंध।
शब्दों से होता भावों का आकलन, शब्दों से होता आपसी व्यवहार,
शब्दों की बुनियाद पर होता देशों में, अरबों खरबों का व्यापार।

शब्दों से मिलता आशीर्वाद, शब्द ही देते अभिशाप,
शब्दों से मिटती मन की कालिमा, शब्द ही फैलातें मन में पाप।
शब्दों पर रखें सदा ही संयम, शब्द ही दर्शाते हमारा स्वरुप,
करें शब्दों का सही प्रयोग, शब्द ही बनाते जीवन को अभिरूप।

शब्द ही गढ़ते किसी की पहचान, शब्द बनाते सफलता का सोपान,
शब्दों से मिलती तासिर ज़िंदगी की, शब्दों से बनते प्रीत के गान
शब्द में सत्य है, शब्द में शिव है, शब्द ही सौहार्द के प्रतिमान,
शब्दों से होता सही आचरण, शब्दों का कर लें हम सही से ज्ञान।


लेखन तिथि : 18 नवम्बर, 2021
            

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