देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

शहादत (कविता)

आ गया तेईस मार्च का दिन, कूच करने की आई घड़ी,
देख देख माँ भारती की हालत, भगत के मन में बोझिलता बढ़ी।
साँसे रुद्ध हो रही, भाव भी उनके हो रहे थे अवरुद्ध,
“कैसे बचाऊँ माँ की लाज”, भगत के मन में चल रहा था युद्ध।

मातृभूमि पर आत्मसमर्पण की आई, वह अप्रतिम बेला,
साथ में थे सुखदेव और राजगुरु, भगत न था एक अकेला।
“रंग दे वसंती चोला” गा कर, माँगा शहादत का वरदान,
प्रण लिया तीनों ने “बचाना है आज, माँ भारती का मान”।

पाँवों में थी तीनों के बेड़ियाँ, बज रहे थे घूँघरू बनकर,
मन में था उल्लास अपार, होंगे राष्ट्र पर न्योछावर।
पहन लिये भगवा वस्त्र तीनों ने, बलिदानी का लिया था प्रण,
“मर जाएँगे मिट जाएँगे, शत्रु के समक्ष न करेंगे समर्पण”।

राष्ट्रभक्ति का लगाया रंग, शहादत की बज रही थी चंग,
देशभक्ति की बह रही थी बयार, मन में थी बड़ी उमंग।
“सत श्री अकाल, जो बोले सो निहाल” की गूँज रही थी धार,
गूँज रहे थे हर ओर, “इंक़लाब जिंदाबाद” के उदगार।

कौन पहले चढ़ेगा शहीद वेदी पर, लगी थी इसीकी होड़,
पहले मैं चढ़ूँ, पहले मैं होऊँ शहीद, इसी बात का था शोर।
अजीब था यह आलम, अद्भुत थी उनकी देशप्रेम की भावना,
राष्ट्र के लिए पहले मर मिटने की, अप्रतिम थी यह मनोकामना।

मौत का नाम सुनते ही जब, बड़े शुरमा भी लगते थे घबराने,
मना रहे थे शहादत का जश्न, राष्ट्र के ये तीन दीवाने।
“इंक़लाब जिंदाबाद” की ध्वनि, हुई चहूँ ओर प्रखर,
हँसते मुस्कुराते चढ़ गए तीनों, शहादत की वेदी पर।

मौत को हँस कर गले लगाया, हुए बलिदानी तीनों अभिमानी,
भगत, सुखदेव और राजगुरु की, यह थी अमर बलिदान की कहानी।
आओ आज इस पावन दिन, उनकी बलिदानी का करें हम सुमिरन,
चढ़ाएँ उनकी शहादत पर आज, झुक कर श्रद्धा के दो सुमन।

लें आज हम यही एक प्रण, राष्ट्र का सदा करेंगे वंदन,
शत्रुओं का करेंगे संहार, अक्षुन्न रखेंगे स्वतंत्रता का परचम।
जिस मिट्टी में जन्म लिया, उसी मिट्टी की खा लें सौगंध,
राष्ट्रभक्ति से ही करेंगे सदा, जीवन पथ पर हर क़दम का अनुबंध।


लेखन तिथि : 19 मार्च, 2022
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें