ढूँढता रहा इधर से उधर,
पनाह शान्ति का।
ढूँढते-ढूँढते तन्हा रह गया,
पर पता नहीं कहीं शान्ति का।।
किसी ने कहा वन में जाओ,
शायद मिलेगी वहाँ शान्ति।
वातावरण वहाँ का शांत मिला,
पर मिली न मुझे वहाँ शान्ति।।
सोचा भोग कर सांसारिक सुख को,
पा लूँगा उसमें कहीं न कहीं शान्ति।
नाम, शान, रुपये, पैसे तो ख़ूब मिले,
पर मिली न वहाँ भी मुझे शान्ति।।
आस लिए चला मैं मंदिर-मस्जिद,
रहम से मिल जाए वहाँ शान्ति।
मन और विचार तो बहुत शुद्ध हुआ,
पर वहाँ भी न मिली मुझे शान्ति।।
एक दिन मेरे मन ने मुझको कहा,
क्या खोज रहा है इधर-उधर शान्ति।
एक बार मुझे तो शान्त कर देख,
जीवन में मिल जाएगी तुझे शान्ति।।
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