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शिव गौरा परिणय शुभ पावन (गीत) Editior's Choice

महा शिव शंकर त्रिभुवनेश्वर,
द्वादश ज्योतिर्लिंगराज रे।
रामेश्वर नव पीत वसन सज,
चले शैलेश्वर हिमराज रे।

विश्वनाथ शिव महाकाल पद,
ओंकारेश्वर बैद्यनाथ रे।
सोमनाथ केदारेश्वर शिव,
हर्षित गौरा परिणय साथ रे।

घुश्मेश्वर त्र्यम्बक शिव शंकर,
अपर्णेश मुदित अमरेश रे।
फागुन मास नव बसंत चारु,
त्रिपुरारी पशुपतिनाथ रे।

गौरी हिमजा धवल चन्द्रिका
जगदम्बा ख़ुद अभिराम रे।
प्रणय मिलन शिववामा आतुर,
त्रिलोचन भोले सुखधाम रे।

शिव गौरा परिणय शुभ पावन,
फिर आया फाल्गुन मास रे।
महादेव जो ख़ुद परमेश्वर,
गिरिजा कैलाशी मन आश रे।

बाघाम्बर परिधान महेश्वर,
त्रिलोचन शिव विकराल रे।
महाशक्ति हिमजा गौरी मन,
प्रेम उदित दशा बदहाल रे।

अंगराग भष्म विकराल गात्र,
भुत पिशाच सम्बन्धी रे।
किन्तु पार्वती शिव आराधन,
पा भुवनेश्वर वरदान रे।

वृषवाहन बैठे शिवशंकर,
कंठहार सर्प अतिभान रे।
भूत पिशाच बारात साथ में,
नंदी नायक मुख मुस्कान रे।

ब्रह्म विष्णु गन्धर्व देवगण,
आ रहे बाराती साथ रे।
दुल्हा राजा स्वागत परिणय,
लखि माँ मेना शिवनाथ रे।

गिरिराज हिमालय खड़े विनत,
विधि हरि दर्शन अभिलाषी रे।
परमेश्वर पा जामाता शिव,
कन्यादान सुख आभासी रे।

नाच गान चहुँ बाजे गाजे,
मदमस्त शिवगण उत्साह रे।
पार्वती सखी विजया सह,
शिव अखिलेश्वर वर राह रे।

शक्ति स्वरूपा ख़ुद बन दुल्हन,
सजी जगदम्बा शृंगार रे।
रत्नजड़ित परिधान चारुतम,
उमा गंगाधर उपहार रे।

अर्धरात्रि मुहूर्त शुभ परिणय,
शहनाई मंगलगायन रे।
शुचिस्मिता तन्वी श्यामा शिव,
शुभ विवाह अनुपम पावन रे।

जगजननी ख़ुद बन परकीया,
अर्धांगिनी प्रिया शिवधाम रे।
तजी गेह माँ पिता नेह को,
शिवा कैलाशी अभिराम रे।

वरमाला गिरिजा कर शोभित,
डाली शुभंकर वरमाल रे।
लिया भवानी चरण कमल शिव,
आशीष नेह पति मान रे।

अश्रु नैन स्नेहिल ममतांचल,
मेना नगेन्द्र मन विह्वल रे।
नैहर प्रीति मुदित मन जीवन,
गिरिजा लिपटी शोकाकुल रे।

सुता बिदाई अति विह्वल मन,
शैलेन्द्र सुता सुखदायी रे।
मातु भवानी स्वयं पीड़ हिय,
स्नेहाश्रु नैन बरसायी रे।


            

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